Thursday, September 3, 2009

Thursday , Sep 03, 2009

Thursday , Sep 03, 2009

भगवान के प्रति भक्ति वास्तव में लक्ष्य तक पहुँचने के लिए अनुशासन का एक रूप है। साधक भक्ति की प्राप्ति को नकार सकता है,ना ही वह ईश्वर को अधिक प्रेम दे सकता है; बल्कि भगवान के प्रति उतना अनुग्रह और प्रेम भावः रख सकता है जितना उसे प्राप्त है। मनुष्य हमेशा यह जानने के लिए उत्सुक रहता है कि किस प्रकार का व्यवहार और कर्म ईश्वर को सबसे अधिक प्रिय है। इस बारे में पूछें, इच्छा रखे और ऐसी बातों का संग्रह करे जो आपके लक्ष्य प्राप्ति में सहायक है। एक भक्त जो भी कार्य करता है, योजना बनाता है या अनुभव करता है उससे ईश्वर कृपा बढ़नी चाहिए। भक्त को ईश्वर द्वारा स्थापित प्राथमिकताओं की कसौटी पर हर विचार और भावना का परीक्षण करना चाहिए। ~ बाबा


साई स्मृति

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