| Tuesday , Sep 01, 2009 | यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं है जिसमे प्रेम ना हो। प्यार शुद्ध और चिरस्थायी आनंद की ओर ले जाता है। इस आनंद की खोज कई मनुष्य दूसरों के साथ अपने संबंधों के माध्यम से करते हैं, कुछ इसे शोहरत, ताकत और दौलत और कुछ अन्य इसे सांसारिक वस्तुओं और सुखों द्वारा प्राप्त करने की कोशिश करते हैं। केवल त्याग के माध्यम से आनंद की प्राप्ति हो सकती हैं। उपनिषद में कहा गया हैं कि अकेले त्याग के द्वारा अमृततत्व (अमरता का आनंद) पाया जा सकता है। मनुष्य को सभी प्रकार के लगाव और स्नेह को ह्रदय से त्यागकर मुक्त होकर उसमे ईश्वर की स्थापना उसके सम्पूर्ण महिमा के साथ करनी चाहिए। यही चिरस्थायी और अनंत आनंद प्राप्त होने का वास्तविक अर्थ है। ~ बाबा
साई स्मृति | | | |
No comments:
Post a Comment