Monday, August 31, 2009

Monday , Aug 31, 2009

Monday , Aug 31, 2009

सेवा हेतु प्रारंभिक आवश्यकता या निस्वार्थ सेवा के लिए ह्रदय की पवित्रता को प्राप्त करना होता है। आपको अपने उद्देश्य और कौशल, लक्ष्य और योग्यता तथा इस बात की जांच करनी चाहिए कि आप सेवा के माध्यम से क्या प्राप्त करने की उम्मीद रखते है। आपको अहंकार और किसी भी प्रसिद्धि के लिए इच्छा का भी पता लगाना चाहिए। आपको तेरा-मेरा और घमंड की इस भावना को कि आप किसी गरीब और कम भाग्यशाली को सेवा दे रहे हैं से छुटकारा पाना चाहिए। आपको पद प्रतिष्ठा, धन-दौलत, विद्वत्ता की अभिमान को त्याग कर विनम्रता, आज्ञाकारिता, अनुशासन और दया का अभ्यास करना होगा। ~ बाबा


साई स्मृति

Sunday, August 30, 2009

Sunday , Aug 30, 2009

Sunday , Aug 30, 2009

संकीर्ण विचारों और भावनाओं से ऊपर उठकर मनुष्य को सभी के प्रति सुहानुभूति दिखाना चाहिए। दया भक्ति की पहचान है। मनुष्यों के प्रति दया भावः रखे बिना भगवान से कृपा की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। प्रेम से भरा ह्रदय परमेश्वर का मंदिर है। भगवान ह्रदय में दया के बिना नहीं रह सकते हैं। प्रेम दृष्टी (सार्वभौमिक प्रेम से रंगी हुई दृष्टि) से बढ़कर दुनिया में कुछ भी नहीं है। इसके द्वारा ही अकेले विविधता में एकता को स्पष्ट देखा जा सकता है। लोगों को पता होना चाहिए कि उनके अन्दर ईश्वर का उत्साह हैं। उन्हें पवित्र विचारों का विकास करके आदर्श जीवन जीना चाहिए। उन्हें समाज के कल्याण को बढ़ावा देने का प्रयास करना चाहिए। ~ बाबा


साई स्मृति

Friday, August 28, 2009

Saturday , Aug 29, 2009

Saturday , Aug 29, 2009

बिना ईश्वर में अटूट विश्वास के जीवन नीरस,सुना तथा हताशा और असफलता की काली रात बन जाती है। परमेश्वर के प्रति प्रेम और पाप का डर ये दोनों एक सुखी जीवन के लिए प्राथमिक आवश्यकता है। इन दोनों के बिना मनुष्य राक्षस बन जाता है। मनुष्य को विश्व के लिए अपने स्वार्थी जरूरतों का बलिदान करने के लिए तैयार होना चाहिए। त्याग से बढ़कर कुछ भी नहीं है। ईमानदार, त्यागी तथा ह्रदय में ईश्वर आपको अपने कर्तव्यों के निर्वहन में प्रतिभा और कौशल का उपयोग करने देगा। आपको अपने अकेले की खुशी के लिए नहीं बल्कि सभी की खुशी के लिए प्रयास करते रहना चाहिए। ~ बाबा


साई स्मृति

Friday , Aug 28, 2009

Friday , Aug 28, 2009

ईश्वर के इस निर्माण के पॉँच पहलु हैं सत्, चित्त, आनंद, रूपा और नामा (अस्तित्व, चेतना, आनंद, रूप और नाम)। प्रथम तीन शाश्वत सिद्धांत हैं, जबकि नाम और रूप क्षणिक होते हैं। सत्, चित्त और आनंद; नाम और रूप के आधार हैं। लोग अपनी भावनाओं के आधार पर भगवान को विभिन्न नाम देते हैं। वे सत्, चित और आनंद के तीन मुख्य सिद्धांतों को भूलकर, नाम और रूप को ही एकमात्र वास्तविकता मन बैठते हैं। हकीकत में नाम और रूप स्थायी नहीं है लेकिन लोग नाम और रूप में डूब कर सत्, चित और आनंद के शाश्वत सिद्धांतों की अनदेखी करते हैं। नतीजतन नाम और रूप में मोहित होकर ईश्वर शक्ति को भूल जाते हैं। ~ बाबा


साई स्मृति

Thursday, August 27, 2009

Thursday , Aug 27, 2009

Thursday , Aug 27, 2009

आध्यात्मिक प्रेम तथा शरीर, मन व बुद्धि के प्रति लगाव में अंतर को समझाना चाहिए। बाकी तीनो दुनिया से संबंधित हैं और दुःख के कारण हैं। सच्चा प्रेम शुद्ध, नि: स्वार्थ, अहंकार से मुक्त और आनंद से भरा होता है। सांसारिक लगाव असली प्रेम नहीं है। ये क्षणिक हैं, जबकि चिरस्थायी, शुद्ध प्रेम ह्रदय से उत्पन्न होता है। क्या कारण है जो मनुष्य इस सर्वव्यापी प्रेम का अनुभव कर पाने में असमर्थ है? इसका कारण यह है कि मनुष्य का ह्रदय विकासहीन और दूषित हो गया है। मन सभी प्रकार के इच्छाओं से भरा है और वहाँ शुद्ध प्रेम के प्रवेश के लिए कोई मार्ग नहीं है। केवल जब सांसारिक लगाव को ह्रदय से निकाल दिया जायेगा तब ह्रदय में प्रेम का विकास होगा। ~ बाबा


साई स्मृति

Wednesday, August 26, 2009

Wednesday , Aug 26, 2009

Wednesday , Aug 26, 2009

शिक्षा हमेशा पथ को प्रकाशवान करती है; अज्ञान का अंधकार और संदेह की सांझ इसके दीप्तमान होने के पहले ही गायब जाते हैं। इस प्रकार मन में अच्छे विचार और भावनाओं को विकसित करना आसान हो जाता है और ह्रदय प्रकाशवान हो जाता है। शिक्षा का अंत सिर्फ ज्ञान का संग्रह में नहीं है, इसके द्वारा मनुष्य के व्यवहार, चरित्र और महत्वाकांक्षा में परिवर्तन ही परिणाम है। ज्ञान को दैनिक जीवन में परीक्षण किया जाना चाहिए। मनुष्य को अपने भीतर मौजूद बहुमूल्य विरासत का आभास नहीं है। वह अपने स्वयं के अलावा हर किसी के में दिलचस्पी लेता है। अगर वह केवल अपने स्वयं के बारे में पता कर ले तो वह विशाल शक्ति, चिरस्थायी शांति और असंख्य सुख का धनी हो जायेगा। ~ बाबा


साई स्मृति

Tuesday, August 25, 2009

Tuesday , Aug 25, 2009

Tuesday , Aug 25, 2009

बिना ईश्वर इच्छा मनुष्य इस दुनिया में कुछ भी नहीं पा सकता है। ईश्वर ही सबका आधार है। तथापि, मनुष्य इस दंभ से भरा है कि वह ही सब कुछ कर रहा है। उसका यही घमंड विनाश का कारण है। यही उसके हताशा और निराशा का कारण है। मनुष्य का जीवन आज उसके प्रकृति पर आधारित है और इसलिए वह भगवान को भूल रहा है। यह एक गंभीर गलती है। आपको इस ब्रह्माण्ड के निर्माता ईश्वर में अपना विश्वास पैदा करना होगा और उनसे प्राप्त अपनी प्रकृति का आनंद उठाना होगा। भगवान पर भरोसा ही मनुष्य का प्रारंभिक दायित्व है। ~ बाबा


साई स्मृति

As written at PRASANTHI NILAYAM Today Monday , Aug 24, 2009

Monday , Aug 24, 2009

जैसे हमारे विचार होते हैं वैसे ही हम बनते हैं। लगातार सोचने से हमारे ह्रदय में एक आदर्श छवि अंकित हो जाती है। जब हम अपने मन को लगातार दूसरों द्वारा किये जा रहे बुराई में लगायेंगे तो हमारा मन भी दूषित हो जायेगा। इसके विपरीत, जब हम दूसरों के गुण या अच्छाई पर ध्यान देंगे तो हमारा मन शुद्ध होगा और केवल अच्छे विचार मन में आयेंगे। प्रेम और करुणा से भरे मनुष्य के मन में कोई भी बुरे विचार घुस नहीं सकते हैं। विचार जिससे हमारी प्रकृति(व्यवहार) आकार लेती है, अन्य लोगों के साथ साथ, वे हमें स्वयं को भी प्रभावित करते हैं। ~ बाबा


साई स्मृति