| Thursday , Aug 27, 2009 | आध्यात्मिक प्रेम तथा शरीर, मन व बुद्धि के प्रति लगाव में अंतर को समझाना चाहिए। बाकी तीनो दुनिया से संबंधित हैं और दुःख के कारण हैं। सच्चा प्रेम शुद्ध, नि: स्वार्थ, अहंकार से मुक्त और आनंद से भरा होता है। सांसारिक लगाव असली प्रेम नहीं है। ये क्षणिक हैं, जबकि चिरस्थायी, शुद्ध प्रेम ह्रदय से उत्पन्न होता है। क्या कारण है जो मनुष्य इस सर्वव्यापी प्रेम का अनुभव कर पाने में असमर्थ है? इसका कारण यह है कि मनुष्य का ह्रदय विकासहीन और दूषित हो गया है। मन सभी प्रकार के इच्छाओं से भरा है और वहाँ शुद्ध प्रेम के प्रवेश के लिए कोई मार्ग नहीं है। केवल जब सांसारिक लगाव को ह्रदय से निकाल दिया जायेगा तब ह्रदय में प्रेम का विकास होगा। ~ बाबा
साई स्मृति | | | |
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